चंद्रावती नगर के वैभव की कहानी बयां कर रहे माउंट आबू में मौजूद पुरा अवशेष, पर्यटकों को नहीं संग्रहालय की जानकारी

माउंट आबू. देश-विदेश में विख्यात पर्यटन स्थल माउंट आबू के प्राकृतिक सौंदर्य के साथ ही यहां की पुरा सम्पदा भी इसमें चार चांद लगा रही है। यहां बने राजकीय संग्रहालय में मौजूद पुरा सम्पदा की अमूल्य धरोहर मध्यकालीन परमार राजाओं की राजधानी चंद्रावती आबूरोड के पुरा अवशेष विलुप्त प्राय: चंद्रावती के वैभव की कहानी बयां कर रहे हैं। इस संग्रहालय में 273 मूर्तियों, 11 पीतल आदि धातु व 6 शिलालेखों के साथ चंद्रावती के पुरा महत्व के अवशेष मौजूद है, लेकिन शायद बहुत से लोग इससे अभी तक अनजान ही है।

पधारो म्हारे देश व अतिथि देवो भव: की आत्मीयता से परिपूर्ण यहां हर साल लाखों देशी-विदेशी पर्यटक माउंट आबू के सौंदर्य को निहारने आते हैं, लेकिन जानकारी के अभाव में अधिकांश पर्यटक इस संग्रहालय में मौजूद पुरा सम्पदा की अमूल्य धरोहर चंद्रावती नगरी के पुरा अवशेषों का अवलोकन करने से वंचित ही रह जाते हैं।

प्रचार-प्रसार के अभाव में सात वर्ष में मात्र 17 हजार पर्यटक ही राजकीय संग्रहालय का अवलोकन कर पाए हैं। जिससे राजकीय कोश में सिर्फ तीन लाख 11 हजार 880 रुपए का राजस्व ही जमा हो सका है। यदि इसका अच्छे से प्रचार-प्रसार किया जाए तो यहां भी पर्यटकों की संख्या में इजाफा हो सकता है।

बेशकीमती संपदा से सजा है संग्रहालय
पुरातात्विक दृष्टि से महत्वपूर्ण राजकीय संग्रहालय पर्वतीय पर्यटन स्थल पर स्थित होने से इसका महत्व और भी बढ़ जाता है। बेशकीमती संपदा को सुव्यवस्थित रखने के लिए संग्रहालय में आदिवासी, लघु चित्र, प्रतिमा, शिलालेख आदि विथिकाओं में बेहतर तरीके से पौराणिक देवी-देवताओं, विषकन्या, गरासिया महिला माॅडल सहित विभिन्न प्रतिमाओं व शिलालेखों को अवलोकनार्थ रखा गया है।

ये हैं संग्रहालय के आकर्षण
संग्रहालय में आदिवासी जनजाति लोक जीवन झांकी, महिला को घट्टी पर अनाज पीसने, झोपडी में मसाला पीसने का सिलबट्टा, धान कूटने की ओखली, सूपडा, इडोणी, धान पात्र, लालटेन व चूल्हे, पुरातनकालीन अस्त्र-शस्त्रों में धनुष बाण, धारिया, बन्दूक, तलवार, कटार, वस्त्रों में घाघरा, ओरना, कुर्ती, आभूषणों में झाबिया वाली होरकी, झाबिया वाला बोरियां, बारली, हाथपॉन, दोमणी नग, दोमा वीटी, मोरिया, कांगसी, गूगरी वाली झूमकी, कोनी कोइयो, झेला, गूथमा तोडी, कड़ा, धार्मिक आस्था के प्रतीक मामाजी के घोड़ों का प्रदर्शन आदि प्रमुख है।

इसी तरह राजस्थान के विभिन्न राज्यों की चित्रकला शैली, विलुप्तप्राय परमार वंश राज्य की राजधानी चन्द्रावती, वरमाण, देवांगन, देलवाडा से मिली प्राचीन दो सौ से अधिक प्रतिमाओं के खजाने, राधा-कृष्ण, शिव-पार्वती, राम-लक्ष्मण, विश्वामित्र, होली का दृश्य, कृष्ण लीला, रागनी आसावरी आदि विभिन्न दीर्घाओं में प्रदर्शित किए हुए हैं। जो सैलानियों को प्राचीन इतिहास से रूबरू कराते हैं।

यह है संग्रहालय का इतिहास
राजकीय संग्रहालय पर्यटकों के आकर्षण का प्रमुख केन्द्र है। अर्बुदांचल क्षेत्र की पुरासम्पदा को संग्रहित, सुरक्षित, संरक्षित व प्रदर्शित करने के लिए इस संग्रहालय की स्थापना की गई। 18 अक्टूबर 1962 को तत्कालीन राज्यपाल डॉ. संपूर्णानंद की ओर से शिलान्यास किया गया। जिसे आमजन के लिए 1965 में प्रारंभ किया गया। संग्रहालय संरक्षण, जीर्णोद्धार, विकास कार्य के बाद संग्रहालय एक नए कलेवर, साज सज्जा से पर्यटकों को आकर्षित कर रहा है। संग्रहालय में पुरासंपदा को नवीन वैज्ञानिक पद्धति से प्रदर्शित किया गया है।

गत सात वर्षों में आए 17 हजार देशी-विदेशी पर्यटक
ऐतिहासिक संग्रहालय के अवलोकन के लिए देशी-विदेशी पर्यटकों का आवागमन बना रहता है। जिसके चलते वर्ष 2017 में 2 हजार 765 देशी-विदेशी पर्यटकों से 49 हजार 830, 2018 में 3 हजार 530 पर्यटकों से 61 हजार 860, 2019 में 2 हजार 718 पर्यटकों से 50 हजार 700, 2020 में 878 पर्यटकों से 14 हजार 620, 2021 में एक हजार 359 पर्यटकों से 25 हजार 660, 2022 में तीन हजार 372 पर्यटकों से 61 हजार 840, 2023 व 24 के फरवरी महीने तक दो हजार 393 पर्यटकों से 47 हजार 970 रुपए की राजस्व आय हुई। इस तरह से कुल 17 हजार 15 पर्यटकों से तीन लाख 11 हजार 880 रुपए की आय अर्जित की गई। संग्रहालय में अधीक्षक इमरान अली, कनिष्ठ सहायक कुलदीप यादव, चार चतुर्थ श्रेणी कर्मचारी व दो नाइट गार्ड संग्रहालय में कार्यरत हैं।



Source: Sirohi News