Sawan Somwar: इस अनोखे मंदिर में भगवान विष्णु ने किया था शिखर स्थापित, 84 फीट शिवलिंग की होती है पूजा

सिरोही/पत्रिका. मंडार कस्बे में पहाड़ी स्थित लीलाधारी महादेव के चमत्कार आज भी देशभर में चर्चित हैं। मंदिर में पहाड़ी पर सबसे बड़े 84 फीट के स्वयंभू शिवलिंग की सदियों से पूजा देव क्षत्रिय रावल ब्राह्मण करते आ रहे हैं। मान्यता है कि शिवलिंग समेत पूरी पहाड़ी को भगवान विष्णु ने अपने हाथों से ग्वाले के रूप में आकर स्थापित किया था। इसका उल्लेख शास्त्रों पुराणों में भी है।

किवदंती के अनुसार लंकाधिपति रावण महादेव का परम भक्त था। रावण भक्ति से प्रसन्न होकर महादेव ने वरदान दिया। रावण ने कैलाश पर्वत स्थित मंदा शिखर को ले जाकर लंका में स्थापित करना चाहा। महादेव ने तथास्तु कहा। रावण मंदा शिखर को हाथों में धारण कर ले जाने लगा तो देवताओं में हडक़ंप मच गया। देवता विष्णु भगवान के पास गए। विष्णु ने इंद्र के पास जाने की सलाह दी। देवताओं के आग्रह पर इंद्र ने रावण को लघुशंका के लिए आतुर किया। उस दौरान मंदिर स्थल पर भगवान विष्णु ग्वाले का रूप धारण कर गाय चरा रहे थे। रावण की दृष्टि पड़ी तो ग्वाले से कहा, मैं तुझे अपार शक्ति देता हूं। इस पर्वत को धारण कर। यह कहकर ग्वाले के हाथ में मंदा शिखर थमा दिया। रावण थोड़ी दूर जाकर लघुशंका कर लौटा तो भगवान उसी स्थान पर मंदा शिखर स्थापित कर चले गए थे। रावण को वहां से निराश लौटना पड़ा था। बताया जाता है कि मंडार का नाम भी मंदा शिखर से मंदा, मदार, मडार से अपभ्रंश होकर मंडार हुआ।

रंग-बिरंगी रोशनी से सजाया
श्रावण मास को लेकर लीलाधारी महादेव मंदिर सहित समूची पहाड़ी को रंग-बिरंगी रोशनी से सजाया हैं। पहाड़ी की तलहटी पर यातायात व्यवस्था की है। भक्तों के लिए छाया, पानी व प्रसादी के लिए हाट भी लगाए हैं।

यह भी पढ़ें : सावन के दूसरे सोमवार को बनेगा हरियाली और सोमवती अमावस्या का संयोग, पूजा से मिलेंगे विशेष फल

शिवालय प्रगाढ़ आस्था का केन्द्र
राजस्थान, गुजरात, महाराष्ट्र सहित समूचे भारतवर्ष में लीलाधारी महादेव के भक्त हैं। आज भी लोग संतान सुख तथा शरीर पर मस्से होने पर घी का रेला मानते हैं। मंडार में आने वाला और सरकारी कर्मचारी ड्यूटी ज्वाइन करने से पहले लीलाधारी के दर्शन करता है तथा हर सोमवार धोक लगाने आता है।

 

photo_6152344105682843080_x.jpg

आमलकी ग्यारस को भरता है मेला
होली नजदीक आते ही क्षेत्र में चंग की थाप पर फूहड़ गीतों का चलन व नृत्य शुरू हो जाता है। महाशिवरात्रि पर्व के बाद फाल्गुन शुक्ला ग्यारस यानी आमलकी ग्यारस को लीलाधारी महादेव का विशाल मेला भरता है। जिसमें हजारों लोग पहुंचते हैं। दर्शन व पूजा के बाद चंग की थाप पर जमकर नृत्य करते हैं। महिलाएं मेले में नहीं आकर महाशिवरात्रि पर्व पर दर्शन करती है।

लीलाधारी किसानों के हैं कुलदेवता
क्षेत्र के किसान लीलाधारी महादेव को कुल देवता मानते हैं। किसान महाशिवरात्रि पर चूरमे तथा नए गेहूं की बालियों का भोग लगाते हैं। वहीं आमलकी ग्यारस पर मेले में नवजात शिशु को धोक लगाने पहुंचते हैं।

हर सोमवार को मेले सा माहौल
श्रावण मास में दूर दराज से महिला श्रद्धालु दर्शन करने पहुंचते है। इस बार भी श्रावण मास में बाहर से आने वाले भक्तों के लिए प्रसादी व्यवस्था की है।

यह भी पढ़ें : इन जिलों में 72 घंटे सक्रिय रहेगा मानसून, 12 जुलाई से बदलेगा मौसम



Source: Sirohi News