राजस्थान की आदिवासी महिला टीपू देवी ने मूर्तिकला से देश-विदेश में बनाई पहचान, 30 से 35 लाख का सालाना टर्नओवर

राजस्थान के सिरोही जिले में आबूरोड क्षेत्र के आदिवासी बहुल सियावा गांव में करीब 24 वर्ष पूर्व एक आदिवासी महिला की पहल से आज यहां की 45 आदिवासी महिलाओं की कला देश-दुनिया में पहचान बना चुकी है।

सियावा निवासी आदिवासी महिला टीपू देवी गरासिया ने गांव की 10 महिलाओं के साथ महिला समूह बनाकर मिट्टी से मूर्ति बनाने का कार्य शुरू किया था। गांव की मिट्टी से ही तैयार कलाकृतियों ने प्रदेश में ही नहीं पूरे देश व विदेशों तक पहचान बनाई है।

आदिवासी महिलाओं की गांव की मिटटी से बनाई गई मूर्तियों की कई देशों में अच्छी डिमांड है। वर्तमान में गांव में करीब 45 महिलाएं वर्क फ्राॅम होम के माध्यम से कार्य कर घर का खर्च खुद चला रही है। मूर्तिकला के इस कार्य का

सालाना टर्नओवर 30 से 35 लाख रुपए हैं।
टीपू देवी ने मार्च-2000 में 7 हजार रुपए निवेश कर 10 महिलाओं के साथ राजस्थान आदिवासी मिट्टी शिल्प फेडरेशन की स्थापना की थी। समूह ने मिट्टी से मूर्तियां बनाने का कार्य शुरू किया था। टीपू देवी गरासिया व संस्था को 2006 में उत्कृष्ट कार्य के लिए तत्कालीन राष्ट्रपति एपीजे अब्दुल कलाम ने भी सम्मानित किया था।

कई देशों में लगी प्रदर्शन

यहां तैयार होने वाली मूर्तियों की चीन के शंघाई, इटली के मिलान, स्विट्जरलैंड, पेरिस और सिंगापुर में प्रदर्शनी लगाई जा चुकी है। मूर्तियों का व्यापार देश के अलावा ऑस्ट्रेलिया, कनाडा व फ्रांस आदि देशों तक फैला हुआ है।

30 से 35 लाख रुपए का सालाना टर्नओवर

मूर्तिकला के इस कार्य का सालाना टर्नओवर 30 से 35 लाख रुपए हैं। टीपू देवी ने बताया कि आदिवासी महिलाएं केंद्र से कच्चा माल ले जाकर तैयार घर पर मूर्तियां तैयार कर केंद्र पर लेकर आती है। जिसे प्रशिक्षित आदिवासी महिला पेंटर ही पेंट कर तैयार करती है। कोरोना के बाद से वर्क फ्रॉम होम से ही कार्य करवाया जा रहा है। इससे महिलाओं को घर बैठे ही महीने की 7-8 हजार रुपए की आय होती है।

जयपुर की कम्पनी के जरिए व्यापार, शिल्प ग्राम प्रोजेक्ट की मांग अधूरी

वर्तमान में संस्था जयपुर की कम्पनी के जरिए माल बेच रही है। रिटेल आउटलेट नहीं होने के कारण मूर्तियों का पूरा दाम नहीं मिल पाता है। टीपू देवी ने बताया कि करीब 13 वर्ष पूर्व प्रशासन से शिल्प ग्राम के लिए भूमि आवंटन कर रिटेल आउटलेट तैयार करने का प्रोजेक्ट दिया था, लेकिन आज दिन तक इसे स्वीकृति नहीं मिली है। यूआईटी से भी पत्रावली उच्चाधिकारियों को भेजी जा चुकी है। प्रोजेक्ट को अनुमति मिलने पर मूर्तियों का पूरा दाम मिलने से आदिवासी महिलाओं की आय में भी बढ़ोत्तरी होगी व बड़े स्तर पर यह कार्य किया जा सकेगा।



Source: Sirohi News