कोरोना में आत्मनिर्भर बनीं आदिवासी महिलाएं : 36 किचन गार्डन से 400 परिवारों तक सब्जियां पहुंचा रहीं

अमरसिंह राव/भरत कुमार प्रजापत

सिरोही. कोरोना की महामारी के बीच पलायन रोकने के लिए सिरोही जिले की आदिवासी महिलाएं पुरुषों पर निर्भर नहीं रहकर खुद अच्छी आमदनी कमा रही हैं। सुखद खबर यह है कि पिण्डवाड़ा और आबूरोड की आदिवासी महिलाएं खुद के बनाए 36 किचन गार्डन से 400 परिवारों तक सब्जियां पहुुंचाकर अपने परिवार का पालन.पोषण कर रही हैं। गार्डन से हर महिला 10 से 12 हजार रुपए महीना कमा रही है। इतना ही नहींए इसके अलावा यहां आदिवासी परिवार का हर दसवां घर भी बकरी व मुर्गीपालन के व्यवसाय से जुड़ा हुआ है और इससे भी एक परिवार हर माह 2 से 15 हजार रुपए महीना अतिरिक्त आय कमा रहा है।
पिण्डवाड़ा क्षेत्र की आदिवासी महिला धनी बाई गरासिया को छह महीने पहले सिरोही कृषि विज्ञान केन्द्र से मुर्गीपालन के लिए जब 20 चूजे दिए गए तब इनको इस बात का अंदाजा ही नहीं था कि आगे चलकर कोरोना जैसी महामारी के बीच जीवन यापन करना पड़ेगा। अब जबकि इन चूजों ने बड़े होकर मुर्गे.मुर्गी के रूप में आकार लियाए अण्डे दिएए कुनबा बढ़ाया और परिवार के पालन.पोषण का जरिया बने तो अब जाकर इनका महत्व समझ में आया है। ठीक ऐसा ही हाल बकरी पालन में भी है। जैसा कि धनी बताती हैं अब मुर्गी व बकरी पालन के व्यवसाय से होने वाली आमदनी से परिवार की जरूरतें पूरी करने में सहयोग मिल रहा है। ठीक ऐसी ही स्थिति पवनी देवीए हिरी बाई और जमीबाई सरीखी 36 आदिवासी महिलाओं की है जो सब्जी बेचकर परिवार चला रही है। इन्होंने घर में पोषण वाटिका और गृह वाटिका ; किचन गार्डन द्ध लगाकर हरी सब्जियां बेचकर अच्छी आमदनी ले रही हैं। फिलहाल ये महिलाएं 12 तरह की सब्जियां बेच रही हैं। साथ परिजनों के खाने के लिए भी वाटिका से पोष्टिक सब्जी मिल जाती है।

जानकार बताते हैं…
जानकार बताते हैं कि जिले में जनजातीय किसानों की आय बढ़ाने के लिए सिरोही कृषि विज्ञान केन्द्र की तरफ से हर साल दिसम्बर में बड़ी संख्या में आदिवासियों को मुर्गीपालन का प्रशिक्षण और चूजे दिए जाते हैं। गत दिसम्बर माह में 35 आदिवासियों को प्रत्येक को 20 चूजे दिए गए। साथ ही हर किसान को मुर्गीपालन के लिए एक पिंजरा बनाकर भी दिया गया। जिससे मुर्गियों की बाहरी जानवरों जैसे बिल्लीए सांप आदि से सुरक्षा हो सकें। ऐसे में मुर्गीपालन से प्रत्येक किसान को अलग से दो हजार रुपए कि अतिरिक्त आय हो रही है।

वैज्ञानिक कहते हैं
सिरोही कृषि विज्ञान केन्द्र की ओर से समय.समय पर आदिवासी लोगों को मुर्गी पालनए बकरी पालनए किचन गार्डन बनाने समेत अन्य प्रशिक्षण दिया जाता है लेकिन लॉक डाउन के बाद आदिवासी क्षेत्र में बहुत कुछ उपयोगी साबित हुआ है। हमारे यहां से पिछली बार 36 आदिवासियों ने मुर्गीपालन के लिए चूजे दिए हैं और लॉकडाउन के बाद अब आदिवासी खुद चलकर मुर्गीपालन को अपना रहे हैं। आदिवासी महिलाओं की ओर से 36 किचन गार्डन से 400 से अधिक लोगों तक सब्जियां पहुंचाई जा रही हैं। यह सब सुखद इसलिए है कि आदिवासी महिलाएं इसमें खासी आगे आ रही हैं।

डॉ. महेन्द्र सिंह चांदावत, वरिष्ठ वैज्ञानिक व अध्यक्षए कृषि विज्ञान केन्द्र सिरोही


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Source: Sirohi News