Chakreshwari Devi Temple: पठानों के राज के समय जालोर के तत्कालीन राव लूणा तथा लुंबा चौहान ने बड़गांव तथा मंडार फतह के बाद यहां सदियों पूर्व लीलाधारी की पहाड़ी में मंडार देवी के पास स्थित गुफा में मां शाकम्बरी की स्थापना की थी। जहां प्राचीन प्रतिमाएं आज भी मंदिर के बाहर जीर्ण शीर्ण है। जो मां हाथी पर सवार है। मां शाकम्बरी की सवारी हाथी है जो चौहानों की कुलदेवी है।
लेकिन, धीरे धीरे अपभ्रंश होकर शाकम्बरी से चक्रेश्वरी हो गई। मंदिर गुफा में होने से लोगों का आना जाना कम रहा। चार दशक पूर्व यहां नवरात्रि में विशेष पूजा अर्चना तथा गरबे हुआ करते थे। बाद में ढाई दशक पूर्व मंदिर का जीर्णोद्वार करवा पुन: नूतन प्रतिमा स्थापित करवाई। जहां नित्य पूजा भी होती है। परिसर में एक छोटा शिवालय भी है। नवरात्रा में अखंड ज्योत तथा पूजा अर्चना होती है।
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मां के चमत्कार के चर्चे है । सच्चे मन से मां का ध्यान तथा मन्नत मांगने पर इच्छा पूर्ण करती है। आज भी गांव के लोग बताते हैं। मंदिर के पास खड़े इमली के पेड़ की टहनी पर बैठ कर श्रावण मास में मोर बारिश के लिए पुकार करता है यानी बोलता है तो बारिश अवश्य होती है। बड़गांव तथा मंडार को फतेह करने कर बाद जालोर के राव लूणा तथा राव लुंबा ने लीलाधारी की एक गुफा में मंडार देवी के पास चौहानों की कुलदेवी शाकम्बरी की हाथी पर सवार मां की स्थापना की थी। उस दौरान सिरोही की स्थापना भी नहीं हुई थी।
Source: Sirohi News