माउंट आबू। चुनाव आते ही प्रत्याशी विकास का भरोसा देकर मतदाताओं को लुभाने लग जाते है, लेकिन जीत के बाद जनता की सुध तक नहीं लेते। इसकी बानगी है देश-विदेश में विख्यात पर्यटन स्थल माउंट आबू की सीता वन कॉलोनी। यहां के बाशिन्दें करीब 40 साल से भी अधिक समय से मतदान करते आ रहे हैं और उनके मत से कितने ही प्रत्याशी जीतकर विधानसभा और लोकसभा में पहुंच गए, इस बीच कितनी ही सरकारें आई और गई, लेकिन उनकी हालत आज भी जस की तस है। कॉलोनी के बाशिन्दें आज भी बिजली और पेयजल जैसी मूलभूत सुविधाओं तक को तरस रहे हैं।
नगर पालिका क्षेत्र में स्थित सीता वन कॉलोनी बस स्टैंड से महज 2 किलोमीटर दूर है। जहां जाने के लिए सड़क तो है लेकिन इस कॉलोनी में आजादी के बाद आज दिन तक एक भी घर में ना तो विद्युत कनेक्शन है और ना ही पानी की सुविधा। कॉलोनी में पेयजल के लिए एकमात्र सार्वजनिक नल है, जिस पर पेयजल सप्लाई के दिन करीब 5 घंटे तक महिला-पुरुषों, बुजुर्गों व बच्चों की कतार लगती है। उस दिन कतार में लगने के कारण बच्चे स्कूल तक नहीं जा पाते। तब जाकर कंठ तर करने के लिए पानी नसीब होता है।
इस बार सीतावन कॉलोनी के निवासियों ने 25 नवंबर को होने वाले विधानसभा चुनाव में मतदान का बहिष्कार करने की घोषणा की है। कॉलोनी वासियों का आरोप है कि हर बार नेता चुनाव के समय आकर लुभावने आश्वासन देते हैं और जीत के बाद कोई सुध नहीं लेते। अब कॉलोनी वासी प्रशासन व सरकार से मांग कर रहे हैं कि उन्हें या तो यहां पर सारी मूलभूत सुविधाएं उपलब्ध कराएं, या उन्हें अन्य स्थान पर विस्थापित करें।
लंबे समय तक वन विभाग से लड़े 40 परिवार
करीब 50 वर्ष से सीता वन कॉलोनी में बसने वाले परिवारों की जमीन पर वन विभाग का दावा करने के बाद वन विभाग और इन परिवारों के बीच लंबी कानूनी लड़ाई चली। खसरा नंबर 492 पर करीब 40 परिवार निवास कर रहे हैं। जिन्हें वन विभाग ने अतिक्रमण मानते हुए 1998 को इन परिवारों के खिलाफ मुकदमा दर्ज किया था। साथ ही सीसीएफ व तहसील न्यायालय ने इन परिवारों के खिलाफ फैसला सुनाते हुए बेदखल करने का आदेश दिया था। उसके बाद इन परिवारों ने जिला कलक्टर के समक्ष अपील की लेकिन वहां भी इसे खारिज कर दिया।
इसके बाद माउंट आबू ग्रीष्मकालीन अवकाश पर पहुंचे राज्यपाल से यह लोग मिले तो राज्यपाल ने 14 जून 1998 को आवासीय योजना में इन लोगों को अन्य जगह पर स्थापित करने के आदेश दिए। उसके पश्चात 11 जून 2001 को जोधपुर संभागीय आयुक्त ने अपना घर योजना के तहत इन्हें स्थापित करने के अधिकारियों को निर्देश दिए। बावजूद इसके लंबा समय गुजरने के बाद भी इन परिवारों का स्थाई समाधान नहीं हुआ। इतना ही नहीं हाल ही में 8 अप्रेल को बोर्ड की आयोजित हुई बैठक में भी सीता वन कॉलोनी निवासियों को विस्थापित करने का निर्णय लिया था।
केवल चुनाव के समय पार्टियों को आते हैं मतदाता याद
सीता वन कॉलोनी नगर पालिका के वार्ड संख्या 12 में है। यहां विधानसभा व लोकसभा के अलावा निकाय चुनावों के दौरान भी दोनों पार्टियों के प्रत्याशी लोगों को लुभावने आश्वासन देकर वोट बटोरकर कर चले जाते हैं। इस कॉलोनी में करीब 200 मतदाता है। जहां सुविधा के नाम पर पूरी कॉलोनी में एकमात्र सार्वजनिक नल है, जहां एक दिन छोड़कर एक दिन पानी आने पर 5 घंटे लंबी लाइन लग जाती है। बच्चों से लेकर बुजुर्ग एवं महिलाएं दिनभर लाइन में खड़ी रहती हैं। जिस दिन पानी की सप्लाई आती है उस दिन परिवार का कोई भी बच्चा स्कूल पढ़ने नहीं जाता। ऐसे में चुनावों के समय बड़े बड़े वादे करने वाले लोग इन हालातों में इन लोगों को भूल जाते हैं। इस कॉलोनी में नगर पालिका से कोई भी सफाई कर्मी सफाई करने तक नहीं पहुंचते हैं।
1980 के पहले से दे रहे वोट, जीत के बाद किसी ने नहीं ली सुध
कॉलोनी के लोगों ने बताया कि वे 1980 से पहले से मतदान करते आ रहे हैं। पहले सेंट मैरी स्कूल के अंदर रहते थे, उसके बाद उसके पीछे कॉलोनी में रहना शुरू किया। जिसका नाम सीता वन रखा गया। पूर्व पालिका अध्यक्ष लीला देवी ने बताया कि 1994 में उन्होंने सीता वन से चुनाव लड़ा, तब भी इन्होंने मतदान किया था। पालिका में नेता प्रतिपक्ष सुनील आचार्य ने बताया कि मतदाता सूची में 160 मतदाताओं का नाम है।
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हर बार चुनाव के समय नेता वोट मांगने आ जाते हैं। उसके बाद हमारा हाल-चाल जानने कोई नहीं आता। हमारे यहां बिजली व पानी की कोई सुविधा नहीं है। एक सार्वजनिक नल से पूरी कॉलोनीवासी पानी भरते हैं। इस बार हमने वोट नहीं देने का निर्णय लिया है।
दिया देवी, निवासी, सीता वन कॉलोनी माउंट आबू
मैं सीतावन कॉलोनी से पार्षद हूं। इनकी समस्याओं को लेकर मैं कई बार अधिकारियों व सरकार तक बात पहुंचा चुकी हूं, लेकिन कोई समाधान नहीं हुआ। अब कॉलोनी वासी मुझे भी कह रहे हैं कि इस बार हम मतदान नहीं करेंगे।
लीला देवी, पार्षद सीतावन कॉलोनी, माउंट आबू
Source: Sirohi News