माउंट आबू. पंचशील समझौते के भरोसे रहकर चीन की ओर से आक्रमण नहीं होने के प्रति भारत पूरी तरह से निश्चिंत था, पर चीन ने समझौते का उल्लंघन करते हुए 20 अक्टूबर.1962 को युद्ध थोप दिया। युद्ध के रूप में यह मानसरोवर समेत हमारे देश के बड़े भू-भाग को हथियाने की साजिश थी। जिसके बारे में युद्ध से महीनेभर पहले ही सैन्य अधिकारियों व तत्कालीन प्रधानमंत्री पं. जवाहरलाल नेहरू को आगाह कर दिया गया था। यह बात प्रखर चिंतक व वयोवृद्ध समाजसेवी माउंट आबू के निवासी बाबूभाई कश्यप ने बुधवार को ‘पत्रिकाÓ से मुखातिब होते हुए कही।उन्होंने किशोरावस्था में भारत-चीन युद्ध से कुछ ही समय पूर्व की गई कैलाश-मानसरोवर यात्रा का विस्तृत वृतांत सुनाया। जैसे-तैसे कर जुटाए गए महज अस्सी रुपए की राशि के साथ वे यात्रा पर निकल पड़े थे।
सीमा पर देखी थी चीनी सैनिकों की गतिविधियांउन्होंने बताया कि अलमोडा से दस-बारह दिन की पैदल यात्रा की। मानसरोवर की परिक्रमा के बाद वे राक्षसताल से कैलाश पर्वत तक गए। इस दौरान सीमा के आसपास जो गतिविधियां देखी, वे भयावह व चिंताजनक लगी। जगह-जगह चीनी सैनिक भारी असले के साथ तैनात थे। वापसी में उन्होंने जगह-जगह देश की सेना के कैम्प में सैनिकों से चर्चा की। उच्चाधिकारियों से मिलने का मौका मिला तो उन्होंने सैन्य अधिकारियों से मिलकर उन्हें चीनी सैनिकों के सीमा पर जमावड़े व गतिविधियों के बारे में पूरी जानकारी दी। सैन्य अधिकारियों ने तत्कालीन प्रधानमंत्री पं. नेहरू से उन्हें मिलाने की व्यवस्था कराई। जहां उन्होंने सीमा पर हो रही गतिविधियों की जानकारी दी। यात्रा के बाद वे जब वापस पालनपुर पहुंचे तो वहां जोशखरोश के साथ उनका स्वागत किया गया।
महीनेभर बाद रेडियो से मिली युद्ध छिडऩे की सूचना
कश्यप ने बताया कि यात्रा के करीब महीनेभर बाद ही ऑल इंडिया रेडियो के जरिए चीन ने भारत पर आक्रमण करने का समाचार मिला। युद्ध में कैलाश-मानसरोवर से लेकर अक्साई चीन क्षेत्र तक के बड़े भू-भाग पर चीन ने कब्जा कर लिया। जिसका खामियाजा आज तक भारत को भुगतना पड़ रहा है।
Source: Sirohi News